कैद
गुंजाइशे गूंज रही थी
गुमनाम मैं घूम रही थी
गर गुमसुम सी आंखें गुम थी कही ,
देखी दिखाइ दुनिया देख चुकी थी
दीवार और दरवाज़े दस्तक को छिपा चुकि थी,
दिल, धड़कन, और दिमाग दूर कही दौड़ रहे थे
मगर कदम कही करजे़ मे कैद थे,
किस्मत के कानून की अपनी अलग कार्यवाही थी
कैद में मै एक केदी और बाकी हर जगह खुशियो कि आबादी थी ।।
-आई (i)
AA